देश के हर कोने में पहुंचेगी संस्कृत की धारा

वाराणसी-संस्कृत भारत की आत्मा है।बिना संस्कृत के ज्ञान के आत्मज्ञान असंभव है।आज विश्व में संस्कृत की मांग तेजी से बढ़ी है, क्योंकि संस्कृत न सिर्फ सबसे प्राचीन भाषा है,बल्कि वैज्ञानिक भाषा भी है। इतिहास में भारतीय संस्कृति पर हुए कई कुठाराघातों के कारण हमने संस्कृत को भुला दिया, लेकिन आज एक बार फिर भारत की इस महान भाषा का महत्व समझ में आ रहा है और पूरा विश्व इसके प्रति नतमस्तक है। भारत वासियों के मुख तक पहुंचाने के लिए एक बार फिर जनजागृति की आवश्यकता है, जिसे हमें पूरे मनोयोग से करना होगा।


उपर्युक्त बातें उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ श्यामलेश तिवारी ने कही।वे उत्तरप्रदेश संस्कृत संस्थान के तत्वावधान में नगर के सुंदरपुर स्थित संवादशाला में सरल संस्कृत संभाषण शिक्षण  योजना के कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे।

बता दें कि संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरल संस्कृत सम्भाषण शिक्षण योजना के तहत पाठ्यक्रम निर्माण किया जाना है। इस हेतु तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। इस मौके पर काशीणि विद्या भवन के महंत स्वामी बृज चैतन्य भी उपस्थित रहे।उन्होंने विश्व बिरादरी में संस्कृत के बढ़ते प्रभाव की चर्चा की और कहा कि भारत को यदि विश्वगुरु बनाना है तो संस्कृत के महत्व को समझना होगा। 
तीन दिवसीय प्रशिक्षण के उद्घाटन समारोह में उपस्थित उत्तर प्रदेश के संस्कृत भारती के क्षेत्र संगठन मंत्री संजीव कुमार राय ने इस कार्यशाला के बारे में बताया कि प्रदेश के हर कोने से संस्कृत के विद्वान आए हैं और कम समय में लोगों की बोली में संस्कृत को कैसे लाया जाए इसके लिए पाठ्यक्रम तैयार करेंगे जिस पर वृहद चर्चा के पश्चात पाठ्यक्रम लागू होगा। 



इस मौके पर उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के जगदानंद झा,सतीश पांडेय,जोखन पांडेय,डॉ सरोज पाण्डेय, अरविन्द राय शर्मा,कृष्णमोहन हिन्दू,रंजीत कुमार,नागेश कुमार,अमित मिश्रा,पूजा शुक्ला,डॉ वीणा भारती,मीना कुमारी, देव निरंजन, डॉक्टर गणेशधर द्विवेदी,डॉ राधा रानी,मनोज कुमार,ईश नारायण, जितेंद्र मिश्रा, समेत कई लोग मौजूद रहे।

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